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Showing posts from November, 2018

Bihu

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बिहु नृत्य  ( असमिया : বিহু নৃত্য,  हिन्दी : बिहू नृत्य)  भारत  के  असम  राज्य का  लोक नृत्य  है जो बिहु त्योहार से संबंधित है। यह खुशी का नृत्य युवा पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है और इसकी विशेषता फुर्तीली नृत्य मुद्राएँ तथा हाथों की तीव्र गति है। नर्तक पारंपरिक रंगीन असमिया परिधान पहनते हैं। हालाँकि बिहु नृत्य का मूल अज्ञात है, लेकिन इसका पहला आधिकारिक सबूत तब मिलता है जब अहोम राजा रूद्र सिंह ने 1694के आसपास रोंगाली बिहु के अवसर पर बिहु नर्तकों को रणघर क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था।

Kuchipudi

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कुचिपुड़ी  एगो शास्त्रीय नाच या नृत्य के शैली हवे। ई नाच भारत की आंध्रप्रदेश राज्य में सभसे प्रचलित हवे आ एहिजे एकर जनम भइल रहे। आंध्रप्रदेश की अलावा ई पुरा दक्खिनी भारत में बहुत परचलित नाच हवे। कहल जाला की एकर जनम  कुचिपुड़ी गाँव  में भइल रहे आ एकर शुरुआत सिद्धेन्द्र योगी नाँव के कृष्ण-भक्त संत कइले रहलें। कुचिपुड़ी नाच के परदर्शन आम तौर पर कुछ परंपरागत तरीका से शुरू होला। जेवना में स्टेज पर एगो शुरूआती पूजन नियर होखेला जेकरा बाद कलाकार अपनी पात्र के रूप में प्रवेश करे लें। प्रवेश की बाद कलाकार आपन परिचय देला आ पात्र के अस्थापित करे के काम करे ला। एकरा बाद मुख्य नाटक आरम्भ होला। ई नाच-नाटक हमेशा कर्नाटक संगीत में सजल गीत की साथे होखे ला। गीत के एक ठो गायक गावे ला आ मिरदंग वायलिन बाँसुरी आ तम्बूरा पर गायक के सहजोग कइल जाला। नाचे वाला कलाकार के ज्यादातर गहना आ आभूषण एगो खास हलुक लकड़ी के बने लें जौना के बूरुगु कहल जाला आ ई परम्पारा सतरहवीं सदी में शुरू भइल रहे।

Kathakali

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कथकली कथकली  शास्त्रीय भारतीय नृत्य  के प्रमुख रूपों में से एक है। यह कला की एक "कहानी खेल" शैली है, लेकिन पारंपरिक रूप से पुरुष अभिनेता-नर्तकियों पहनने वाले विस्तृत रंगीन मेक-अप, वेशभूषा और चेहरे का मुखौटा है। कथकली मुख्य रूप से  मलयालम-  स्पीकिंग दक्षिण पश्चिम क्षेत्र (  केरल ) में एक हिंदू प्रदर्शन कला के रूप में विकसित हुई।  कथकली की जड़ें अस्पष्ट हैं। कथकली की पूरी तरह विकसित शैली 17 वीं शताब्दी के आसपास हुई, लेकिन इसकी जड़ें मंदिर और लोक कला (जैसे  कुटियाट्टम  और दक्षिणपश्चिम भारतीय प्रायद्वीप के धार्मिक नाटक) में हैं, जो कि कम से कम पहली सहस्राब्दी  सीई के  लिए खोजी जा सकती हैं। भारत के सभी शास्त्रीय नृत्य कलाओं की तरह एक कथकली प्रदर्शन, विचार व्यक्त करने के लिए संगीत, मुखर कलाकार, कोरियोग्राफी और हाथ और चेहरे के संकेतों को एक साथ संश्लेषित करता है। हालांकि, कथकली अलग है कि इसमें प्राचीन भारतीय मार्शल आर्ट्स और दक्षिण भारत की एथलेटिक परंपराओं से आंदोलन भी शामिल है।  कथकली भी अलग है कि हिंदू सिद्धांतों और मठवासी स्कूलों में मुख्य रूप से विकसित अन्य शास्त्रीय भारतीय न

Dumhal

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दुम्हल नृत्य जम्मू-कश्मीर के पारंपरिक लोक-दुम्हल नृत्य दमहल नृत्य उत्तर भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य केवल क्षेत्र के वट्टाल जनजाति के पुरुषों द्वारा किया जाता है। दुम्हल नृत्य जनजाति में विशिष्ट शुभ मौकों पर प्रस्तुत किया जाता है। जिन गीतों पर नर्तकियां प्रदर्शन करती हैं वे लोक गीत हैं जो कोरस में उनके द्वारा गाए जाते हैं। पुरुष एक बैनर लेते हैं, एक साथ इकट्ठे होते हैं और जुलूस में एक विशिष्ट स्थान पर मार्च करते हैं। वे एक पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंचते हैं और जमीन में ध्वज खोदते हैं। फिर वे बैनर के चारों ओर घूमते हुए दुम्हल नृत्य करते हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लोगों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए दुम्हल नृत्य किया गया था। यह नृत्य देवताओं का आह्वान करने के लिए एक श्रद्धांजलि है और ज़ियारेट मंदिर के तीर्थयात्रा के समय प्रस्तुत किया जाता है। माना जाता है कि यह नृत्य  शाहर सुकर सलोनी  द्वारा शुरू किया गया था। वह सूफी संत बाबा नासीम-उ-दीन-गाज़ी का शिष्य था। शाहर सुकर सलोनी ने अपने प्रचार को याद रखने के लिए अपने गुरु की याद में यह नृत्य किया

Bharatnatyam

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भरतनाट्यम चाहें चधिर अट्टम मुख्य रूप से दक्षिण  भारत  क शास्त्रीय नृत्य शैली ह। इ भरत मुनि की नाट्य शास्त्र (जवन की 400 ई.पू. क ह) पर आधारित बा। वर्तमान समय में ए नृत्य शैली क मुख्य रूप से औरत लोगन द्वारा अभ्यास कइल जाला। ए नृत्य शैली क प्रेरणास्त्रोत चिदंबरम की प्राचीन मंदिर की मूर्तियन से मिलेला। भरतनाट्यम के सबसे प्राचीन नृत्य मानल जाला। ए नृत्य के  तमिलनाडु  में देवदासी विकसित व प्रसारित कइली स। शुरू शुरू में ए नृत्य को देवदासियन की द्वारा विकसित कइले की कारण उचित सम्मान नाहीं मिल पवलस। लेकिन बीसवीं सदी की शुरूआत में ई. कृष्ण अय्यर और रुकमणि देवी की प्रयास से ए नृत्य के दोबारा स्थापित कइल गइल। भरत नाट्यम के दुगो भाग होला, एके साधारणत: दू भाग में सम्पन्न कइल जाला, पहिला नृत्य और दूसरा अभिनय। नृत्य शरीर की अंगन से उत्पन्न होला एमें रस, भाव और काल्पनिक अभिव्यक्ति जरूरी ह। भरतनाट्यम में शारीरिक प्रक्रिया के तीन भाग में बांटल जाला -: समभंग, अभंग, त्रिभंग भरत नाट्यम में नृत्य क्रम ए तरह से होला। आलारिपु - ए भाग में कविता(सोल्लू कुट्टू) रहेला। एकरीये छंद में आवृति होला। जातीस्वरम - इ भ